हमराह-ए-अब्र बर्क़-ए-फ़रोज़ाँ भी आएगी
हमराह-ए-अब्र बर्क़-ए-फ़रोज़ाँ भी आएगी
वो आएँगे तो आह-ए-रक़ीबाँ भी आएगी
दिल बुझ गया तो और बढ़ेगी ये तीरगी
जलते रहो कि सुब्ह-ए-दरख़्शाँ भी आएगी
फूटेंगे आबले तो खिलेंगे कई गुलाब
फ़स्ल-ए-बहार सू-ए-बयाबाँ भी आएगी
कम-कम रहेगी दिल में तिरे धूप की चुभन
सहरा में तुझ को याद-ए-गुलिस्ताँ भी आएगी
ऐ अंदलीब लब पे न ला शिकवा-ए-ख़िज़ाँ
आख़िर कभी तो फ़स्ल-ए-बहाराँ भी आएगी
छोड़ा वतन तो इस का गुमाँ तक न था कि यूँ
ग़ुर्बत में याद-ए-महफ़िल-ए-याराँ भी आएगी
नज़्ज़ारगी में होश किसे था कि ऐ 'नरेश'
सूरत कोई क़रीब-ए-रग-ए-जाँ भी आएगी
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