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हर इक चलन में उसी मेहरबाँ से मिलती है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

हर इक चलन में उसी मेहरबाँ से मिलती है

सैफ़ुद्दीन सैफ़

MORE BYसैफ़ुद्दीन सैफ़

    हर इक चलन में उसी मेहरबाँ से मिलती है

    ज़मीं ज़रूर कहीं आसमाँ से मिलती है

    सुरूद-ए-इश्क़ में नग़्मात-ए-सह्र शामिल हैं

    तिरी ख़बर भी मिरी दास्ताँ से मिलती है

    तिरी निगाह से आख़िर अता हुई दिल को

    वो इक ख़लिश कि ग़म-ए-दो-जहाँ से मिलती है

    चले हैं 'सैफ़' वहाँ हम इलाज-ए-ग़म के लिए

    दिलों को दर्द की दौलत जहाँ से मिलती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : غزل اس نے چھیڑی-6 (पृष्ठ 221)
    • रचनाकार : فرحت احساس
    • प्रकाशन : ریختہ بکس ،بی۔37،سیکٹر۔1،نوئیڈا،اترپردیش۔201301 (2019)

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