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हर सू मौसम नूर पे था जब मीलादों सत-सँगों का

परवेज़ रहमानी

हर सू मौसम नूर पे था जब मीलादों सत-सँगों का

परवेज़ रहमानी

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    हर सू मौसम नूर पे था जब मीलादों सत-सँगों का

    था झंकार पे राग बसंती सूफ़ी सुन्नत मलँगों का

    घर घर नचने नाच रहे हैं महानगर के तालों पर

    गाँव के बारह-मासों में दम टूट गया मरदंगों का

    मेरे अहद के बच्चे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं

    अमन की बगिया में है अब तो हर पल मौसम दंगों का

    क्या ख़ुश-मर्ज़ी थी लोगों पर लोगाँ जीते मरते थे

    दिल वालों की बस्ती में अब क़ब्ज़ा है मन-तंगों का

    मुल्क मुल्क दुर्योधन महशर-सामानी पर आमादा

    नील गगन बनता जाए मैदान सितारा जंगों का

    राजाओं का देस था घर घर हाथी झूमा करते थे

    आज वही भारत 'रहमानी' मुल्क है भूखों नंगों का

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