हर ज़बाँ पर है गुफ़्तुगू तेरी
हर ज़बाँ पर है गुफ़्तुगू तेरी
है हर इक दिल में आरज़ू तेरी
मेहर-ओ-मह दोनों तुझ से शश्दर हैं
ये तजल्ली है चार-सू तेरी
मय से ऐ शैख़ गर तहारत कर
आबरू हो दम-ए-वुज़ू तेरी
ज़ुल्फ़ सुम्बुल है और कमर रग-ए-गुल
है ये तारीफ़ मू-ब-मू तेरी
गुल न फूलें समाए जामे में
गर सबा से वो पाएँ बू तेरी
लाई आहू को दाम में गोया
आँख पर ज़ुल्फ़-ए-मुश्कबू तेरी
दुर-ए-दंदाँ पे तो फ़िदा 'अहक़र'
चश्म-ए-गिर्यां है आबरू तेरी
- पुस्तक : Naqshha-e-rang rang (पृष्ठ 55)
- रचनाकार : Radhe Shiyaam Ahqar
- प्रकाशन : Nami Press Lucknow (1953)
- संस्करण : 1953
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