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हर्फ़ तुम अपनी नज़ाकत पे न लाना हरगिज़

मीर मेहदी मजरूह

हर्फ़ तुम अपनी नज़ाकत पे न लाना हरगिज़

मीर मेहदी मजरूह

MORE BYमीर मेहदी मजरूह

    हर्फ़ तुम अपनी नज़ाकत पे लाना हरगिज़

    हाथ बेदाद-ओ-सितम से उठाना हरगिज़

    तुम भी चोरी को यक़ीं है कहोगे अच्छा

    अब हमें देख के आँखें चुराना हरगिज़

    इश्क़ है एक मगर आफ़त-ए-नौ है हर-दम

    ये वो मज़मूँ है कि होगा पुराना हरगिज़

    यही अंदाज़ तो हैं दिल के उड़ा लेने के

    उन की तुम नीची निगाहों पे जाना हरगिज़

    सबब-ए-क़त्ल-ए-मोहब्बत है अगर ज़ालिम

    तो मिरा जुर्म किसी को बताना हरगिज़

    दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता का हो राज़ इफ़्शा चश्म

    अश्क-ए-गुल-रंग का टपका लगाना हरगिज़

    हूँ तुनक-ज़र्फ़ झेलूँगा शराब-ए-पुर-ज़ोर

    पर्दा यकबार चेहरे से उठाना हरगिज़

    हम से बीमार भी जाँ-बर कहीं होते हैं मसीह

    तुम यहाँ के तकलीफ़ उठाना हरगिज़

    जिंस-ए-नायाब के होते हैं हज़ारों गाहक

    तुम पता अपना किसी को बताना हरगिज़

    मैं तो क्या उस से तो मूसा भी सर-बर आए

    इम्तिहानन हमें जल्वा दिखाना हरगिज़

    जो चला तीर-ए-सितम दिल से वो गुज़रा चर्ख़

    तेरा ख़ाली गया कोई निशाना हरगिज़

    ज़िक्र बर्बादी-ए-देहली का सुना कर हमदम

    नेश्तर ज़ख़्म-ए-कुहन पर लगाना हरगिज़

    आब-ए-रफ़्ता नहीं फिर बहर में फिर कर आता

    देहली आबाद हो ये ध्यान लाना हरगिज़

    वो तो बाक़ी ही नहीं जिन से कि देहली थी मुराद

    धोका अब नाम पे देहली के खाना हरगिज़

    गेती-अफ़रोज़ अगर हज़रत-ए-नय्यर रहते

    इतना तारीक तो होता ज़माना हरगिज़

    अब तो ये शहर है इक क़ालिब-ए-बे-जाँ हमदम

    कुछ यहाँ रहने की ख़ुशियाँ मनाना हरगिज़

    दर-ए-मय-ख़ाना हुआ बंद सदा ये है बुलंद

    याँ हरीफ़ान-ए-क़दह-ख़्वार आना हरगिज़

    अल्लाह अल्लाह वो नव्वाब-ए-उलाई के कलाम

    जिन से रंगीं नहीं बुलबुल का तराना हरगिज़

    तू तो है 'अनवर'-ओ-'मैकश' की जुदाई का निशाँ

    दिल-ए-पुर-दर्द से दाग़ जाना हरगिज़

    सौत-ए-बुलबुल तरफ़-अंगेज़ सही पर हमदम

    दर्द फ़र्सूदा दिलों को सुनाना हरगिज़

    मैं हूँ इक मजमा-ए-अहबाब का बिछड़ा गुलचीं

    मुझ को गुल-दस्ता-ए-रंगीं दिखाना हरगिज़

    जम्अ' है मजमा-ए-अहबाब फ़ज़ा में तेरी

    तसव्वुर ये मुरक़्क़ा मिटाना हरगिज़

    दिल में हैं हसरत-ओ-अंदोह के अम्बार लगे

    इतना यकजा कहीं होगा ख़ज़ाना हरगिज़

    साक़ी-ए-बज़्म तिरी तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल के निसार

    दुर्द-ए-मय का भी इधर जाम लाना हरगिज़

    क़हर लाएँगे ये तालेअ' जो ज़रा भी चेते

    फ़लक ख़्वाब से उन को जगाना हरगिज़

    महफ़िल-ए-ऐश से गर हज़ हो उठाना दोस्त

    हम से आज़ुर्दा-दिलों को बुलाना हरगिज़

    दार-ए-फ़ानी में कर फ़िक्र-ए-क़याम नादाँ

    गुज़र-ए-सैल है याँ घर बनाना हरगिज़

    जिन के ऐवान थे हम-पल्ला-ए-क़स्र-ए-क़ैसर

    उन की मिलता नहीं क़ब्रों का ठिकाना हरगिज़

    वो गए दिन जो चमन-ज़ार में दिल लगता था

    सच है यकसाँ नहीं रहता है ज़माना हरगिज़

    हम-सफ़ीरान-ए-चमन सब हुए गर्म-ए-पर्वाज़

    अब ख़ुश आता नहीं गुलज़ार में जाना हरगिज़

    ज़ग़न-ओ-ज़ाग़ की गुलशन में सदा है हर सू

    मुर्ग़-ए-ख़ुश-नग़्मा आवाज़ सुनाना हरगिज़

    क़स्र-ए-हाली के हवाली में ज़रा तुम 'मजरूह'

    अपनी डेढ़ ईंट की मस्जिद बनाना हरगिज़

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