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हूँ शैख़ मुसहफ़ी का मैं हैरान-ए-शाएरी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

हूँ शैख़ मुसहफ़ी का मैं हैरान-ए-शाएरी

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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    हूँ शैख़ मुसहफ़ी का मैं हैरान-ए-शाएरी

    अल्लाह मुफ़्लिसी में ये कुछ शान-ए-शाएरी

    रौंदा उसे तमाम मिरे रख़्श-ए-क्लिक ने

    सौदा से बच रहा था जो मैदान-ए-शाएरी

    मैं और ले के सौदा नमक उस में भर दिया

    था उस का कम नमक जो नमकदान-ए-शाएरी

    हिन्दोस्ताँ के गर्दन-ए-ख़ुर्द-ओ-बुज़ुर्ग पर

    है सच तो ये मिरा ही है एहसान-ए-शाएरी

    पैरव हैं मेरी तर्ज़ के याँ छोटे और बड़े

    मुल्क-ए-सुख़न का हूँ मैं सुलेमान-ए-शाएरी

    रहते हैं ईंचा-तानी में अब उस के और यार

    था हाथ में मिरे जो गरेबान-ए-शाएरी

    रखती है नोक-ए-ख़ामा-ए-जादू-रक़म हनूज़

    मिज़्गान-ए-तर से ताज़ा गुलिस्तान-ए-शाएरी

    मूँदी जो आँख मैं ने तो चश्म-ए-ज़माना से

    छुप जाएगा वूंही मह-ए-ताबान-ए-शाएरी

    मैं इब्तदा-ए-उम्र में मुद्दत तलक बहुत

    छाना है फ़ारसी का सफ़ाहान-ए-शाएरी

    ब'अद इस के रेख़्ते की भी रक्खी है वो बिना

    हैराँ हैं जिस के नक़्श-ए-तराज़ान-ए-शाएरी

    कुछ कुछ कहे हैं फिर अरबी में जो शेर-ओ-नज़्म

    इस में भी बन गया हूँ मैं सहबान-ए-शाएरी

    दिन रात मेरे नाख़ुन-ए-नोक-ए-क़लम में हैं

    लाखों तरीक़ शेवा उनवान-ए-शाएरी

    हर सिफ़्ला का दहन ये नहीं है कि हो सके

    मेरे सिवाए शम्-ए-शबिस्तान-ए-शाएरी

    जिस रोज़ मेरे जिस्म से निकलेगी मेरी जाँ

    ये जानियो तू आज गई जान-ए-शाएरी

    लाखों तराना-संज हुए इस के रेज़ा-चीं

    'मुसहफ़ी' मिरा ही है वो ख़्वान-ए-शाएरी

    स्रोत :
    • पुस्तक : kulliyat-e-mas.hafii(haftum) (पृष्ठ 318)

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