इधर कुछ और कहती है उधर कुछ और कहती है
इधर कुछ और कहती है उधर कुछ और कहती है
ये दुनिया चाहती कुछ है मगर कुछ और कहती है
ये दिल कुछ और कहता है नज़र कुछ और कहती है
मगर उन की निगाह-ए-मो'तबर कुछ और कहती है
क़सीदे पढ़ रहे हो तुम चमन की शान में लेकिन
हर इक झुलसी हुई शाख़-ए-शजर कुछ और कहती है
ब-ज़ाहिर हैं जदीद उस्लूब की आराइशें दिलकश
मगर तहक़ीक़-ए-अर्बाब-ए-हुनर कुछ और कहती है
पता सेहत का चलता है मरीज़-ए-ग़म के चेहरे से
मगर संजीदगी-ए-चारागर कुछ और कहती है
तिरी पोशाक के पैवंद हैं इफ़्लास के मज़हर
तिरी बा-रौब शख़्सिय्यत मगर कुछ और कहती है
बनाने को बना लें हम भी शीशों के मकाँ 'अनवर'
मगर यारों की संग-अफ़्गन नज़र कुछ और कहती है
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