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इक 'अजब सी धुंध में अब सर बसर लिपटा हूँ मैं

सलमान ख़याल

इक 'अजब सी धुंध में अब सर बसर लिपटा हूँ मैं

सलमान ख़याल

MORE BYसलमान ख़याल

    इक 'अजब सी धुंध में अब सर बसर लिपटा हूँ मैं

    खो गया हूँ यूँ कि ख़ुद को भी कहाँ दिखता हूँ मैं

    ढूँढता हूँ इक शनासा मजमा-ए-अग़्यार में

    अजनबी चेहरे भी पहरों देखता रहता हूँ मैं

    शहर की शब पर बपा हैं जगमगाती लाइटें

    हाए रातों को अंधेरा ढूँढता फिरता हूँ मैं

    ये मिरा कार-ए-जुनूँ है या मजाज़-ए-जुस्तुजू

    रात भर सड़कों पे यूँ ही घूमता फिरता हूँ मैं

    चश्म-ए-ज़ाहिर का मुझे पहचानना मुमकिन कहाँ

    दिल की आँखों से मुझे देखो तो जानो क्या हूँ मैं

    रौशनी चारों तरफ़ है और मैं साया रक़्स-कुन

    घट गया जो इस तरफ़ तो उस तरफ़ बढ़ता हूँ मैं

    फ़ासला कुछ बढ़ गया मेरा मिरी परछाई से

    ये जो तेरी रौशनी से दूर सा रहता हूँ मैं

    सब रक़म ही कर दिया तो दिल में बाक़ी क्या रहे

    कुछ ख़याल अपने ही अंदर बाँध कर रखता हूँ मैं

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