इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था
इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था
तर्क-ए-तअल्लुक़ात मिरा मुद्दआ' न था
नासेह वो शोख़ दुश्मन-ए-ईमाँ था वाक़ई
और फिर मिरा मिज़ाज भी कुछ आशिक़ाना था
टूटा है अपने ज़ोम-ए-वफ़ा का तिलिस्म आज
महसूस हो रहा है कि तू बेवफ़ा न था
हम ख़ुद भी तर्क-ए-राह-ए-वफ़ा पर हैं मुन्फ़इल
पर क्या करें कि और कोई रास्ता न था
जब से जुदा हुए हैं तबीअ'त उदास है
और लुत्फ़ ये कि तुझ से कोई मुद्दआ' न था
- पुस्तक : Kulliyat-e-gopal mittal (पृष्ठ 185)
- रचनाकार : Gopal Mittal
- प्रकाशन : Modern Publishing House, Daryaganj New delhi (1994)
- संस्करण : 1994
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