इक नए उनवाँ से ता'मीर-ए-जहाँ करते हैं हम
रोचक तथ्य
(May 1982)
इक नए उनवाँ से ता'मीर-ए-जहाँ करते हैं हम
आज हर क़तरे को बहर-ए-बे-कराँ करते हैं हम
इश्क़ में कब इम्तियाज़-ए-ईँ-ओ-आँ करते हैं हम
जिस से करते हैं मोहब्बत बे-गुमाँ करते हैं हम
सई कुछ करते भी हैं तो राएगाँ करते हैं हम
जो हमें लाज़िम है 'तालिब' वो कहाँ करते हैं हम
बिजलियाँ बे-ताब होती हैं जलाने के लिए
जब कभी क़स्द-ए-बिना-ए-आशियाँ करते हैं हम
जज़्बा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा की आज़माइश शर्त है
इम्तिहाँ तुम ले चुके अब इम्तिहाँ करते हैं हम
शुक्रिया भी लोग कह सकते हैं शिकवा भी इसे
इख़्तियार ऐसा कुछ अंदाज़-ए-बयाँ करते हैं हम
फिर किसी ना-मेहरबाँ की याद तड़पाने लगी
फिर किसी ना-मेहरबाँ को मेहरबाँ करते हैं हम
आरज़ूएँ हसरतें मायूसियाँ नाकामियाँ
हैं यही उनवाँ जो ज़ेब-ए-दास्ताँ करते हैं हम
प्यार क्यूँ आए न अपनी फ़ितरत-ए-मा'सूम पर
अपने दुश्मन को भी अपना राज़-दाँ करते हैं हम
आँसुओं से ताज़ा-तर हैं याद-ए-यारान-ए-क़दीम
दाग़-हा-ए-दिल को रश्क-ए-गुलसिताँ करते हैं हम
जब यही ईमाँ है तो फिर क्या किसी से मशवरा
मय-कदे में बैअ'त-ए-पीर-ए-मुग़ाँ करते हैं हम
राह से क्या काम रहबर की हमें क्या एहतियाज
बे-निशाँ हो कर तलाश-ए-बे-निशाँ करते हैं हम
अब ख़ुदा जाने कि इस में बेश क्या है कम है क्या
दिल नज़र एहसास सब नज़्र-ए-बुताँ करते हैं हम
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