इक शख़्स जज़ीरा राज़ों का और हम सब इस में रहते हैं
इक शख़्स जज़ीरा राज़ों का और हम सब इस में रहते हैं
मोहम्मद अजमल नियाज़ी
MORE BYमोहम्मद अजमल नियाज़ी
इक शख़्स जज़ीरा राज़ों का और हम सब इस में रहते हैं
इक घर है तन्हा यादों का और हम सब इस में रहते हैं
इक मौसम हरे परिंदों का वो सर्द हवा का रिज़्क़ हुआ
इक गुलशन ख़ाली पेड़ों का और हम सब इस में रहते हैं
इक आँख है दरिया आँखों का हर मंज़र उस में डूब गया
इक चेहरा सहरा चेहरों का और हम सब इस में रहते हैं
इक ख़्वाब ख़ज़ाना नींदों का वो हम सब ने बर्बाद किया
इक नींद ख़राबा ख़्वाबों का और हम सब इस में रहते हैं
इक लम्हा लाख ज़मानों का वो मस्कन है वीरानों का
इक अहद बिखरते लम्हों का और हम सब इस में रहते हैं
इक रस्ता उस के शहरों का हम उस की धूल में धूल हुए
इक शहर उस की उम्मीदों का और हम सब इस में रहते हैं
- पुस्तक : Urdu Adab (पृष्ठ 60)
- रचनाकार : Iqbal Hussain
- प्रकाशन : Iqbal Hussain Publishers (Jan, Feb. Mar 1996)
- संस्करण : Jan, Feb. Mar 1996
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