इश्क़ की देखिए रूदाद-ए-वफ़ा ठहरी है
इश्क़ की देखिए रूदाद-ए-वफ़ा ठहरी है
दिल की आवाज़ ज़माने की सदा ठहरी है
आज तक आइना-ए-दिल में यक़ीनन मेरे
हर जफ़ा तेरी वफ़ाओं की अदा ठहरी है
अब कहाँ जाएँगे ये अहल-ए-ख़िरद अहल-ए-जुनूँ
आरज़ू दिल की तो ज़ंजीर-ए-वफ़ा ठहरी है
जाने किस मोड़ पे हासिल है सुकूँ लोगों को
जाने किस मोड़ पे ये ताज़ा हवा ठहरी है
आज के दौर में है जुर्म मोहब्बत करना
आज के दौर में उल्फ़त भी ख़ता ठहरी है
सुनते हैं 'शाद' कि वीराने में दिल के अपने
ग़म की रूदाद ज़माने की जफ़ा ठहरी है
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