जा पहुँचते हैं सर-ए-दार क़ज़ा से पहले
जा पहुँचते हैं सर-ए-दार क़ज़ा से पहले
कितने मंसूर अनल-हक़ की सदा से पहले
हुस्न-ए-तंज़ीम को कहते हैं तरसती ही रही
कहकशाँ मेरे नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा से पहले
सोचता हूँ कि कभी मैं ने सुनी है कि नहीं
कोई आवाज़ दिल-ए-नग़्मा-सरा से पहले
था ग़म-ए-ज़ीस्त मगर कब था शुऊ'र-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त
अहल-ए-दिल अहल-ए-नज़र अहल-ए-वफ़ा से पहले
क़ीमत-ए-दार-ओ-रसन हम ने अदा की 'नश्तर'
जुर्म कोई न किया जुर्म-ए-वफ़ा से पहले
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