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जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे

बिमल कृष्ण अश्क

जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे

बिमल कृष्ण अश्क

MORE BYबिमल कृष्ण अश्क

    जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे

    वो गेरुआ लिबास बदलता दिखाई दे

    दरिया-ए-ज़िंदगी कि निगाहों का है क़ुसूर

    ठहरा दिखाई दे कभी चलता दिखाई दे

    पड़ने लगे जो ज़ोर हवस का तो क्या निगाह

    हर ज़ाविए से जिस्म निकलता दिखाई दे

    बहरूपिए के हाथ पड़े हैं सो रात दिन

    दिन रात रंग-रूप बदलता दिखाई दे

    रक्खे है यूँ तो पाँव सँभल-सोच कर मगर

    नज़रों का फ़र्श है कि फिसलता दिखाई दे

    उस नाम में वो शोला-गरी है जो लीजिए

    हर रूम में चराग़ सा चलता दिखाई दे

    मैं 'अश्क' शक्ल नाम से वाक़िफ़ नहीं मगर

    इक शख़्स है जो साथ ही चलता दिखाई दे

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