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जब तलक इश्क़ का अफ़्साना मुकम्मल होगा

सय्यद मुजीबुल हसन

जब तलक इश्क़ का अफ़्साना मुकम्मल होगा

सय्यद मुजीबुल हसन

MORE BYसय्यद मुजीबुल हसन

    जब तलक इश्क़ का अफ़्साना मुकम्मल होगा

    एक तूफ़ान बपा ज़ेह्न में हर पल होगा

    दिल धड़कने की सदा इतनी कहाँ होती है

    पास ही शोर मचाता कोई पागल होगा

    इतना आसान नहीं दश्त-ए-तमन्ना का सफ़र

    कहीं दरिया तो कोई रास्ता दलदल होगा

    तिश्नगी दश्त की सूरत है लबों पर बैठी

    कब तिरा हाथ मिरे वास्ते छागल होगा

    मंज़िल-ए-दर्द से भी होगा गुज़रना तुझ को

    तब कहीं जा के तिरा आइना सैक़ल होगा

    आख़िरी संग-ए-मसाफ़त है कहाँ क्या मालूम

    क्या ख़बर कब ये सफ़र अपना मुकम्मल होगा

    दिल ये कहता है चलो देख ही आएँ चल कर

    अक़्ल कहती है कि दरवाज़ा मुक़फ़्फ़ल होगा

    उस तरफ़ खुल के बरसता है बहुत अब्र-ए-ख़याल

    चंद लम्हों में इलाक़ा मिरा जल-थल होगा

    चाहते ही नहीं इबलीस सियासत के 'मुजीब'

    मसअला कैसे तअ'स्सुब का यहाँ हल होगा

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