जब याद तिरी आती है थमते नहीं आँसू
जब याद तिरी आती है थमते नहीं आँसू
फिर रात भी हो जाए तो सोते नहीं आँसू
जब ख़ौफ़-ए-ख़ुदा से ये निकल जाएँ तो मोती
जुज़ आब के कुछ और तो होते नहीं आँसू
रुख़्सार के रस्ता पे ही चलते हैं ये सीधे
इंसाँ की तरह रह से भटकते नहीं आँसू
तअ'ज़ीम में पलकों से उतर जाते हैं नीचे
ग़म आएँ तो बैठे हुए रहते नहीं आँसू
जब भी मैं बुलाता हूँ चले आते हैं मिलने
तेरी तरह रुस्वाई से डरते नहीं आँसू
काजल के बिखरने से बना और हसीं वो
हालाँकि किसी आँख में जचते नहीं आँसू
नादान 'नबील' उन से तो जल जाएगा काग़ज़
काग़ज़ के किसी सफ़्हे पे लिखते नहीं आँसू
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