जो भर लें एक चुटकी साहब-ए-तासीर मिट्टी की
जो भर लें एक चुटकी साहब-ए-तासीर मिट्टी की
क़ुर्बान अली सालिक बेग
MORE BYक़ुर्बान अली सालिक बेग
जो भर लें एक चुटकी साहब-ए-तासीर मिट्टी की
अभी शर्मिंदा-ए-तासीर हो इक्सीर मिट्टी की
बना कर आदमी क्यूँ आब-ओ-गिल में इश्क़ को डाला
निकाली है ख़ुदा ने ये नई ता'ज़ीर मिट्टी की
हमारी क़ब्र पर भी इक हुजूम-ए-बे-कसी होगा
दिखा देंगे पस-ए-मुर्दन तुझे तौक़ीर मिट्टी की
ज़मीन-ए-कूचा-ए-दिल-दार ने क्या पाँव पकड़े हैं
मिली दीवानगान-ए-इश्क़ को ज़ंजीर मिट्टी की
रहेगा टूट कर भी ख़ाना-ए-दिल आलम-ए-हसरत
उसे भी आप समझे हैं मगर ता'मीर मिट्टी की
यही मिट्टी है जिस से सब बनाए जाते हैं यारब
बुतों में क्यूँ बदल जाती है फिर तासीर मिट्टी की
वो कुश्ता हूँ कि रू-ए-ख़ाक पर भी आ गई सुर्ख़ी
ख़ुशी से शक्ल बदली है दम-ए-तकबीर मिट्टी की
जुनून-ए-इश्क़ में तेरे ज़माना ख़ाक बरसर है
बढ़ी है इन दिनों तौक़ीर से तौक़ीर मिट्टी की
ज़बाँ दी थी ख़ुदा ने बोलने के वास्ते लेकिन
बनाया नाज़-ओ-तमकीं ने तुम्हें तस्वीर मिट्टी की
कहाँ सैल-ए-हवादिस में पता हम ख़ाकसारों का
कहीं ठहरी है रू-ए-आब पर ता'मीर मिट्टी की
मुसल्लत ख़ाकियों पर क्यूँ किया है चर्ख़ को यारब
न था मक़्बूल उज़्र इस का तो क्या तक़्सीर मिट्टी की
वो क्या क्या ख़ाक उड़ाते हैं ज़बाँ पर आ के तू ने तो
हमारी बात भी ऐ नाला-ए-शब-गीर मिट्टी की
तुम आए मेरे घर का ज़र्रा ज़र्रा हो गया रौशन
हुई मेहर-ए-दरख़्शाँ से सिवा तनवीर मिट्टी की
उड़ाने देते हैं वहशत-ज़दा तेरे कोई दिन में
बढ़ेगी जुस्तुजू अब सूरत-ए-अक्सीर मिट्टी की
वो आए ख़ाक उड़ाने को पस-ए-मुर्दन तो हसरत से
हमारी रूह कहती है ज़हे-तक़दीर मिट्टी की
बनाया उस से है दुश्मन को और हम को मगर 'सालिक'
कहीं तौक़ीर मिट्टी की कहीं तहक़ीर मिट्टी की
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