जो खो चुके हैं वो मंज़र तलाश करती हूँ
जो खो चुके हैं वो मंज़र तलाश करती हूँ
बिखर गए हैं जो पैकर तलाश करती हूँ
कभी तलाश जो करना हो अपना आप मुझे
तो उस की ज़ात के अंदर तलाश करती हूँ
बिछड़ गई हूँ मैं उस से मगर नहीं बिछड़ी
जो बंद उस ने किए दर तलाश करती हूँ
कभी जो हद से गुज़र जाए दुख तो हँसती हूँ
ख़ुशी नहीं जो मयस्सर तलाश करती हूँ
क़रीब रह के भी करती रही थी क़ुर्ब तलाश
मैं चाहतों के ही ज़ेवर तलाश करती हूँ
ये आरज़ू है सनम को क़रीब-तर देखूँ
सो रेगज़ार में पत्थर तलाश करती हूँ
करूँगी उस का तवाफ़ उम्र भर मैं बस 'शाहीं'
अब अपना मरकज़-ओ-मेहवर तलाश करती हूँ
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