जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर
जफ़ा-ए-पीर सब्क़त ले गई बेदाद-ए-तिफ़्लाँ पर
लगाया इत्र जब हम ने लब-ए-रंगीन-ए-जानाँ पर
तो गोया तेल छिड़का आतिश-ए-ला'ल-ए-बदख़्शाँ पर
नहीं ये मो'जिज़ा मौक़ूफ़ कुछ मूसी-ए-इमराँ पर
प्याले हैं यद-ए-बैज़ा कफ़-ए-पुर-नूर-ए-मस्ताँ पर
कभी चलती नहीं बाद-ए-बहारी अपने गुलशन में
वो बुलबुल हूँ कि वारफ़्ता हूँ मैं गुल-हा-ए-हिरमाँ पर
बयाज़-ए-कू-ए-जानाँ बुलबुल-ए-शीराज़ गर देखे
सिफ़त उस बोस्ताँ की लिक्खे औराक़-ए-गुलिस्ताँ पर
किया क़त्ल उस ने मुझ को मैं ने की क़ातिल की आराइश
जमाया ख़ून का लाखा लब-ए-शमशीर-ए-बुर्राँ पर
पस-ए-दीवार तड़पोगे कहाँ तक शौक़ कहता है
कमंद-ए-आह से चढ़ जाओ बाम-ए-क़स्र-ए-जानाँ पर
तसव्वुर बंध गया वहशत में किस के रू-ए-रौशन का
कि आलम वादी-ए-ऐमन का है अपने बयाबाँ पर
हमेशा सब्ज़ रहता है गुलिस्ताँ जूद-ओ-बख़्शिश का
कभी बाद-ए-ख़िज़ाँ चलते न देखी बाग़-ए-एहसाँ पर
हुआ जामे से बाहर किस क़दर शौक़-ए-शहादत है
पड़ी जिस दम नज़र क़ातिल तिरी शमशीर-ए-उर्यां पर
ये किस मेहर-ए-सिपहर-ए-हुस्न ने रक्खे क़दम अपने
गुमान-ए-महर है हर ज़र्रा-ए-ख़ाक-ए-शहीदाँ पर
तुम्हारा मुस्कुराना जानता हूँ जान खोएगा
करेगी एक दिन बर्क़-ए-तबस्सुम ख़िर्मन-ए-जाँ पर
नहीं बस आज-कल सुल्तान इक़लीम-ए-शहादत में
है अपने नाम का सिक्का ज़र-ए-गंज-ए-शहीदाँ पर
मिटा दीं तेज़ियाँ ऐ ज़ोफ़ तू ने दश्त-ए-वहशत में
पड़ा है सूरत-ए-तार-ए-गरेबाँ चाक-ए-दामाँ पर
बना कर तिल रुख़-ए-रौशन पे वो शोख़ी से कहते हैं
ये काजल हम ने पारा है चराग़-ए-माह-ए-ताबाँ पर
उन्हें पर्वा नहीं है कुछ न हो गर बाड़ का डोरा
कि डोरे डालते हैं यार की हम तेग़-ए-उर्यां पर
दहन हो उस के पैदा और ज़बाँ उस की हुवैदा हो
ज़बान-ए-ज़ख़्म को रख दूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-बुर्राँ पर
पड़ा अक्स-ए-शफ़क़ तो नाज़ से कहने लगा क़ातिल
चढ़ा सोने का पानी गुम्बद-ए-क़ब्र-ए-शहीदाँ पर
हमारे यार ने कीं छुप के बातें प्यार की हम से
लगाया आज पोशीदा ये मरहम ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ पर
अगर रौशन करूँ उस को चराग़-ए-दाग़-ए-सौदा से
धुआँ ज़ंजीर बन जाए सर-ए-शम-ए-शबिस्ताँ पर
हुआ धोका जो हम को तेग़-ए-ख़ूँ-आलूद क़ातिल का
गला रगड़ा किए हम मौजा-ए-ख़ून-ए-शहीदाँ पर
मज़ामीं उस के जब बाँधे तो बंदिश साफ़ दी हम ने
जिला कर दी हमेशा गौहर-ए-मज़मून-ए-दंदाँ पर
पस-ए-मुर्दन 'क़लक़' एहसाँ किया ये ना-तवानी ने
सुबुक मेरा जनाज़ा हो गया दोश-ए-अज़ीज़ाँ पर
- पुस्तक : Arshad Ali Khan Qalaq (पृष्ठ e-73 p-71 )
- रचनाकार : Arshad Ali Khan Qalaq
- प्रकाशन : Munshi Nawal Kishor, Lucknow (1911 )
- संस्करण : 1911
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