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कभी भूले से मुमकिन हो मिरी जानिब अगर होना

नासिर ज़ैदी

कभी भूले से मुमकिन हो मिरी जानिब अगर होना

नासिर ज़ैदी

MORE BYनासिर ज़ैदी

    कभी भूले से मुमकिन हो मिरी जानिब अगर होना

    तो औरों की तरफ़ से अपनी नज़रें फेर कर होना

    मुसलसल हिज्र के सदमे ये दिल अब सह नहीं सकता

    घड़ी भर का जुदा होना अगर बार-ए-दिगर होना

    ग़नीमत है कि इक रस्मी तआ'रुफ़ तो मयस्सर है

    नहीं आसाँ किसी मह-वश का मंज़ूर-ए-नज़र होना

    होना तुम किसी के भी यहाँ पर हम-सफ़र यारो!

    अगर होना समझ कर सोच कर कुछ देख कर होना

    नहीं है बाइस-ए-आज़ार-ए-जाँ तर्ज़-ए-अमल कोई

    मगर उस का मिरे बारे में अक्सर बे-ख़बर होना

    वो सुन लेते हैं यूँ तो शेर मेरे रू-ब-रू फिर भी

    ज़रूरी तो नहीं हर दिल पे शे'रों का असर होना

    मैं अपनी ज़ात में जैसा भी हूँ जो कुछ भी हूँ 'नासिर'

    फ़रिश्तों से कहीं बेहतर है मुझ सा भी बशर होना

    स्रोत :
    • पुस्तक : Karwaan-e-Ghazal (पृष्ठ 285)
    • रचनाकार : Farooq Argali
    • प्रकाशन : Farid Book Depot (Pvt.) Ltd (2004)
    • संस्करण : 2004

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