कौन कहता है कि महरूम-ए-करम हैं हम लोग
कौन कहता है कि महरूम-ए-करम हैं हम लोग
लुत्फ़-अंदोज़-ए-जफ़ा महव-ए-सितम हैं हम लोग
ज़ुल्फ़ सुलझी है तो इक हुस्न निखर आया है
इस तरफ़ देख कि आईना-ए-ग़म हैं हम लोग
कोई ख़ातिर में न लाए तो न लाए लेकिन
शायद इस दौर-ए-मोहब्बत में अहम हैं हम लोग
लाएक़-ए-लुत्फ़-ओ-इनायत नहीं हम अहल-ए-वफ़ा
क्या कहा ये कि सज़ा-वार-ए-सितम हैं हम लोग
कम नहीं तेरा तग़ाफ़ुल भी जफ़ा हो कि न हो
इस में क्या शक है कि मम्नून-ए-करम हैं हम लोग
अहल-ए-काबा को शिकायत है तो बेजा भी नहीं
कि हक़ीक़त में परस्तार-ए-सनम हैं हम लोग
फ़ासला कुछ भी नहीं है मगर इदराक कहाँ
आप से दूर तो दो-चार क़दम हैं हम लोग
आप अल्लामा-ओ-फ़नकार हैं 'नुदरत' लेकिन
ये तो फ़रमाइए किस बात में कम हैं हम लोग
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