कौन कहता है कि मर जाने से कुछ हासिल नहीं
कौन कहता है कि मर जाने से कुछ हासिल नहीं
ज़िंदगी उस की है मर जाना जिसे मुश्किल नहीं
हाँ ये सारा खेल परवानों की जाँ-बाज़ी का है
शम-ए-रौशन पर मदार-ए-गिर्या-ए-महफ़िल नहीं
आम ही करना पड़ेगा उन को फ़ैज-ए-इल्तिफ़ात
ग़ैर हरगिज़ इल्तिफ़ात-ए-ख़ास के क़ाबिल नहीं
मुंतख़ब मैं ही हुआ मश्क-ए-तग़ाफुल के लिए
वो तग़ाफ़ुल-केश मेरी याद से ग़ाफ़िल नहीं
हल्क़ा-ए-गिर्दाब है गहवारा-ए-इशरत मुझे
ज़ौक-ए-आसाइश मिरा मिन्नत-कश-ए-साहिल नहीं
देखिए क्या हो हमारे शौक़-ए-मंज़िल का मआल
पाँव में ताक़त ब-क़द्र-ए-दूरी-ए-मंज़िल नहीं
लाख दिल क़ुर्बान उस चश्म-ए-नदामत-कोश पर
या'नी मुझ को आरज़ू-ए-खूँ-बहा-ए-दिल नहीं
मरजा-ए-बर्क़-ए-बला है ऐ 'वफ़ा' दुनिया-ए-इश्क
हासिल-ए-हसरत यहाँ जुज़ हसरत-ए-हासिल नहीं
- पुस्तक : Sang-e-meel (पृष्ठ 77)
- रचनाकार : mela Ram ‘vfaa’
- प्रकाशन : Darpan Publications (2011)
- संस्करण : 2011
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