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कौन कहता है कि तेरी जुस्तुजू करते रहे

मुशताक़ दरभंगवी

कौन कहता है कि तेरी जुस्तुजू करते रहे

मुशताक़ दरभंगवी

MORE BYमुशताक़ दरभंगवी

    कौन कहता है कि तेरी जुस्तुजू करते रहे

    सादा-दिल उश्शाक़ शरह-ए-आरज़ू करते रहे

    ग़म की बस्ती में करोड़ों चाक-दामान-ए-अलम

    ज़ीस्त के हर दौर में फ़िक्र-ए-रफ़ू करते रहे

    जिस ने बख़्शा ही नहीं कुछ सोज़िश-ए-ग़म के सिवा

    ज़िंदगी भर हम उसी की आरज़ू करते रहे

    ये थी ना-समझी हमारी छोड़ कर अपना दयार

    तेरे कूचे में तलाश-ए-रंग-ओ-बू करते रहे

    दिल-ए-ख़ाना-ख़राब उस पैकर-ए-गुल की तलाश

    दर-ब-दर सहरा-ब-सहरा कू-ब-कू करते रहे

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