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ख़ाली है तलब-गारों से बाज़ार-ए-तमन्ना

सुल्तान अख़्तर

ख़ाली है तलब-गारों से बाज़ार-ए-तमन्ना

सुल्तान अख़्तर

MORE BYसुल्तान अख़्तर

    ख़ाली है तलब-गारों से बाज़ार-ए-तमन्ना

    आता ही नहीं कोई ख़रीदार-ए-तमन्ना

    हर चंद कि रहता है वो बेज़ार-ए-तमन्ना

    दामन में समेटे है मगर ख़ार-ए-तमन्ना

    सब अपनी ख़मोशी का लहू चाट रहे हैं

    करता ही नहीं अब कोई इज़्हार-ए-तमन्ना

    इस क़स्र-ए-हवस से कोई बाहर नहीं आता

    कहने को तो हर शख़्स है बेज़ार-ए-तमन्ना

    पैवंद-ए-ज़मीं कर सका सैल-ए-बला भी

    है सर-ब-फ़लक आज भी दीवार-ए-तमन्ना

    कोई भी नहीं कम है किसी से यहाँ 'अख़्तर'

    हर शख़्स है इस शहर में शहकार-ए-तमन्ना

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