ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका
ख़ाना-ए-दिल में दाग़ जल न सका
इस में कोई चराग़ जल न सका
न हुए वो शरीक-ए-सोज़-ए-निहाँ
दिल से दिल का चराग़ जल न सका
सोज़-ए-उल्फ़त से अक़्ल है महफ़ूज़
जल गया दिल दिमाग़ जल न सका
बर्क़ था इज़्तिराब-ए-दिल लेकिन
आरज़ूओं का बाग़ जल न सका
दिल-ए-मायूस में उमीद कहाँ
बुझ के फिर ये चराग़ जल न सका
रौशनी-ए-शुऊर भी आई
फिर भी दिल का चराग़ जल न सका
'अर्श' क्या तुझ से फ़ैज़ महफ़िल को
तू मिसाल-ए-चराग़ जल न सका
- पुस्तक : Aazadi ke baad dehli men urdu gazal (पृष्ठ 251)
- रचनाकार : Professor Unwan Chishti
- प्रकाशन : Asila Offset Printers, Kalan Mahal, Dariyaganj, New Delhi-6 (1989)
- संस्करण : 1989
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