ख़ुद को इतना भी पशेमान नहीं करना था
ख़ुद को इतना भी पशेमान नहीं करना था
चंद लम्हों को दिल-ओ-जान नहीं करना था
तेरी ख़्वाहिश भी न हो तुझ से शिकायत भी न हो
इतना एहसान मिरी जान नहीं करना था
फिर तो होना ही था ऐ 'इश्क़ तमाशा-ए-जुनूँ
होश वालों को निगहबान नहीं करना था
इतनी दूरी थी तो दूरी का भरम भी रखते
मेरी आँखों को शबिस्तान नहीं करना था
दर पे बैठे हैं सवाली कि इजाज़त पावें
तुम को ताख़ीर का सामान नहीं करना था
हम हवाओं से सदा बर-सर-ए-पैकार रहे
अब ये लगता है चराग़ान नहीं करना था
एक उम्मीद के साए में गुज़ारी 'अहमर'
इस क़दर 'उम्र पे एहसान नहीं करना था
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