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खुला मुझ पर दर-ए-इम्कान रखना

ख़ालिद अहमद

खुला मुझ पर दर-ए-इम्कान रखना

ख़ालिद अहमद

MORE BYख़ालिद अहमद

    खुला मुझ पर दर-ए-इम्कान रखना

    मिरे मौला मुझे हैरान रखना

    यही इक मरहला मंज़िल ठहरे

    यही इक मरहला आसान रखना

    मिरे दिल का वरक़ निकले सादा

    कोई ख़्वाहिश कोई अरमान रखना

    ये दिल ताक़-ए-चराग़-ए-ज़र ठहरे

    मिरे मालिक मुझे नादान रखना

    मिरे हालात मुझ को छू पाएँ

    मुझे हर हाल में इंसान रखना

    भरी रखना मिरे मौला ये आँखें

    दुखों की बारिशों का मान रखना

    मिरे साथी भी मुझ से बे-नवा हैं

    बिसातें देख कर तावान रखना

    ये दिन क्यूँकर चढ़ा वो शब ढली क्यूँ

    मुझे आया इतना ध्यान रखना

    मुझे भी 'आम या गुमनाम कर दे

    कि इक आज़ार है पहचान रखना

    असीर-ए-उम्र को आया अब तक

    किताब-ए-हिज्र का 'उन्वान रखना

    हवा की तरह सहरा से गुज़र जा

    सफ़र में क्या सर-ओ-सामान रखना

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    ख़ालिद अहमद

    ख़ालिद अहमद

    स्रोत :
    • पुस्तक : funoon-volume-21 (पृष्ठ 272)

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