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ख़्वाब-ए-आसूदगी सुनहरा है

अख़्तर अली अख़्तर

ख़्वाब-ए-आसूदगी सुनहरा है

अख़्तर अली अख़्तर

MORE BYअख़्तर अली अख़्तर

    ख़्वाब-ए-आसूदगी सुनहरा है

    ज़िंदगी पर तो सख़्त पहरा है

    धूप नफ़रत की बढ़ गई लोगो

    अब मोहब्बत पे छाया गहरा है

    हक़ परस्तों का नाम तंगी

    सारे आलम में जिन का शोहरा है

    हो दिखावा या हो अमल अच्छा

    फ़ैसला नियतों पे ठहरा है

    दूर कितने भी तुम रहो 'अख़्तर'

    रिश्ता दिल से तो दिल का गहरा है

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