किस को सुनाएँ और कहें क्या किसी से हम
किस को सुनाएँ और कहें क्या किसी से हम
सब कुछ लुटा के बैठ गए हैं अभी से हम
अपनी ही कुछ ख़बर है न दुनिया से वास्ता
रहते हैं सब के साथ मगर अजनबी से हम
यूँ तो चराग़ हम ने बहुत से जलाए थे
महरूम फिर भी रहते रहे रौशनी से हम
असरार-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ को ज़ाहिर भी क्यों करें
कहने की बात हो तो कहें हर किसी से हम
हर शे'र अपना आइना-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ है
बस लुत्फ़ लेते रहते हैं अब शाइरी से हम
पहले ज़बान-ए-ग़ैर में करते थे शाइरी
उर्दू में शे'र कहते हैं अब आगही से हम
दिल इतना बुझ गया है ग़मों से कि ऐ 'अज़ीज़'
जीने को जी रहे हैं मगर बे-दिली से हम
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