किसी के हुक्म की तामील करने वाला है
किसी के हुक्म की तामील करने वाला है
वो अपने लहजे को तब्दील करने वाला है
सुनाने बैठ गए किस को दर्द-ओ-ग़म अपना
वो नुक़्ते नुक़्ते की तफ़्सील करने वाला है
किसी ग़रीब की इज़्ज़त से खेलने वालो
ख़ुदा तुम्हारी भी तज़लील करने वाला है
जो ख़ुश्क-ओ-तर के मफ़ाहीम से नहीं वाक़िफ़
समुंदरों को वही झील करने वाला है
मैं उस के साथ भला किस तरह रहूँ 'ज़ाहिद'
जो बात बात पे तज़लील करने वाला है
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