किसी सूरत भी बातिल की तरफ़-दारी नहीं करना
किसी सूरत भी बातिल की तरफ़-दारी नहीं करना
मुनाफ़िक़ की तरह हरगिज़ अदाकारी नहीं करना
वतन के जाँ-निसारों ने दिया है दर्स ये हम को
कभी अपने वतन के साथ ग़द्दारी नहीं करना
ये अंधी शोहरतें इक दिन तुम्हें बे-नाम कर देंगी
कभी तुम भूल कर धोका रिया-कारी नहीं करना
मियाँ वो माल जिस में बेकसों की आह शामिल हो
तुम ऐसी चीज़ से हरगिज़ भी इफ़्तारी नहीं करना
अगरचे तुम हो 'रहबर' क़ौम के तो ध्यान ये रखना
वफ़ा-दारी पे क़ाएम रहना अय्यारी नहीं करना
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