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किसी तमन्ना की दिलबरी में भटक रहा हूँ कई दिनों से

मोहम्मद अतीक़ अहमद

किसी तमन्ना की दिलबरी में भटक रहा हूँ कई दिनों से

मोहम्मद अतीक़ अहमद

MORE BYमोहम्मद अतीक़ अहमद

    किसी तमन्ना की दिलबरी में भटक रहा हूँ कई दिनों से

    मैं तुझ से मिलने की आस ही में भटक रहा हूँ कई दिनों से

    मैं वो मुसाफ़िर जो कारवाँ से बिछड़ गया रास्ते में इक दिन

    सो आज अपनी ही रहबरी में भटक रहा हूँ कई दिनों से

    मैं इक शजर हूँ वफ़ा का लेकिन किसी ने मेरी तरफ़ देखा

    सो मैं चमन-ज़ार-ए-ज़िंदगी में भटक रहा हूँ कई दिनों से

    मैं वो दरीचा कि जिस की क़िस्मत में कोई दीपक कोई जुगनू

    जहान-ए-ग़म की गली-गली में भटक रहा हूँ कई दिनों से

    विसाल की फिर हवा चलेगी इसी लिए तो 'अतीक़' मैं भी

    चराग़-ए-फ़ुर्क़त की रौशनी में भटक रहा हूँ कई दिनों से

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