किसी ज़ालिम की जीते-जी सना-ख़्वानी नहीं होगी
रोचक तथ्य
मासिक इंशा, मार्च -अप्रैल 2008 कलकत्ता
किसी ज़ालिम की जीते-जी सना-ख़्वानी नहीं होगी
कि दाना हो के मुझ से ऐसी नादानी नहीं होगी
दिल-ए-आबाद का सा कोई शहर आबाद क्या होगा
दिल-ए-वीरान की सी कोई वीरानी कहाँ होगी
अदू से क्या गिला करना कि वो मा'ज़ूर लगता है
हमारी क़द्र-ओ-क़ीमत उस ने पहचानी नहीं होगी
नुजूमी में नहीं लेकिन ये अंदाज़े से कहता हूँ
मोहब्बत तो रहेगी पर ये अर्ज़ानी नहीं होगी
इलाज-ए-अस्ल है इक आज़मूदा नुस्ख़ा दुनिया में
परेशाँ तुम रहोगे तो परेशानी नहीं होगी
खुला दरवाज़ा रख छोड़ा है जब जी चाहे आ जाना
अजी अब हम से अपने घर की दरबानी नहीं होगी
न तुम आए तो 'साबिर' क्या मज़ा आएगा महफ़िल में
ग़ज़ल-ख़्वानी तो होगी पर गुल-अफ़्शानी नहीं होगी
- पुस्तक : Alami Urdu Adab, Jild 27 (पृष्ठ 158 (e)159)
- रचनाकार : Nand Kishor Vikram
- प्रकाशन : Publishers and Advertisers, Krishn Nagar, Delhi, (October 2008)
- संस्करण : October 2008
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