कोई अरमान मिरे दिल का निकलने न दिया
कोई अरमान मिरे दिल का निकलने न दिया
शोख़ियों ने तिरी फ़िक़रा भी तो चलने न दिया
पै-ब-पै तीर-ए-नज़र आए सँभलने न दिया
चाँदनी चौक से बिस्मिल को निकलने न दिया
जब सिसकने का नहीं हुक्म तड़पना कैसा
इतना अरमान भी क़ातिल ने निकलने न दिया
बज़्म-ए-हस्ती में अभी आ के तो हम बैठे थे
यूँ अजल आई कि ज़ानू भी बदलने न दिया
शब-ए-फ़ुर्क़त से हो हासिल मुझे किस तरह नजात
सख़्त-जानी ने मिरा दम भी निकलने न दिया
रहम कर पर्दा-ए-फ़ानूस से ऐ शम्अ निकल
इस क़दर ज़ुल्म कि परवानों को जलने न दिया
ये दबाया क़द-ए-मौज़ूँ ने तिरे तूबा को
बाग़-ए-फ़िरदौस में भी फूलने फलने न दिया
ख़ूब नज़्ज़ारा-ए-क़ातिल रहा 'अकबर' तह-ए-तेग़
हाथ रुक रुक गया तक़दीर ने चलने न दिया
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