कुछ ख़याल-ए-दिल-ए-हस्सास मिरी जाँ रखना
कुछ ख़याल-ए-दिल-ए-हस्सास मिरी जाँ रखना
आइना टूट भी सकता है ये इम्काँ रखना
हो के तहलील-ए-वफ़ा अक्स को पिन्हाँ रखना
रू-ब-रू ज़ात के आईने को हैराँ रखना
घर से मानूस जो हो जाए पराया कैसा
जो बसे दिल में उसे क़ुर्ब-ए-रग-ए-जाँ रखना
दुख के काँटों पे सजा लेना तबस्सुम के गुलाब
अपनी हस्ती को हमा-रंग गुलिस्ताँ रखना
हर नए गाम पे तजदीद-ए-वफ़ा कर लेना
अज़्म-ए-नौ से सफ़र-ए-ज़ीस्त को आसाँ रखना
ज़र्फ़ ख़ाली हो तो फ़रियाद-कुनाँ होता है
दिल में कुछ हसरत-ओ-उम्मीद के सामाँ रखना
तीरगी ज़ीस्त के आदाब मिटा देती है
दिल को दर आए हुए दर्द से ताबाँ रखना
वहम है वज्ह-ए-परागंदा-ए-ख़ातिर 'शारिक़'
वहम से ख़ुद को बहर-हाल गुरेज़ाँ रखना
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