कुछ लोग तो इतनी भी मुरव्वत नहीं करते
कुछ लोग तो इतनी भी मुरव्वत नहीं करते
मिलने की कभी ख़ुद से भी ज़हमत नहीं करते
इस बार तो रस्ते भी मुझे रोक रहे हैं
दीवार-ओ-दर-ओ-बाम ही उल्फ़त नहीं करते
बाज़ार में अब कौन ख़रीदार है अपना
इतनी भी ज़ियादा अभी क़ीमत नहीं करते
क्या होगा सर-ए-शाम जो हम होंगे न घर में
ये सोच के हम शहर से हिजरत नहीं करते
कहते हैं फ़क़ीरों की फ़ज़ीलत पे क़साएद
हम आज भी हुक्काम की बैअ'त नहीं करते
सज्दों के एवज़ ख़ुल्द-ए-बरीं माँगने वालो
क्यूँ अपने मकानों को ही जन्नत नहीं करते
छुप जाते हैं आग़ोश में सूरज की हमेशा
ये चांद-सितारे कभी रेहलत नहीं करते
सूखे हुए पेड़ों पे कोई फूल नहीं है
क्यूँ इन से परिंदे भी मोहब्बत नहीं करते
दीवार तो उठती हुई देखेंगे घरों में
वो लोग जो बच्चों को नसीहत नहीं करते
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