लग़्ज़िश-ए-गाम लिए लग़्ज़िश-ए-मस्ताना लिए
लग़्ज़िश-ए-गाम लिए लग़्ज़िश-ए-मस्ताना लिए
आए हम बज़्म में फिर जुरअत-ए-रिंदाना लिए
इश्क़ पहलू में है फिर जल्वा-ए-जानाना लिए
ज़ुल्फ़ इक हाथ में इक हाथ में पैमाना लिए
याद करता था हमें साक़ी-ओ-मीना का हुजूम
उठ गए थे जो कभी रौनक़-ए-मय-ख़ाना लिए
वस्ल की सुब्ह शब-ए-हिज्र के बा'द आई है
आफ़्ताब-ए-रुख़-ए-महबूब का नज़राना लिए
अस्र-ए-हाज़िर को मुबारक हो नया दौर-ए-अवाम
अपनी ठोकर में सर-ए-शौकत-ए-शाहाना लिए
- पुस्तक : Kulliyat-e-Ali Sardar Jafri Vol.II (पृष्ठ 228)
- रचनाकार : Ali Ahmad Fatmi
- प्रकाशन : Qaumi Council Baray-e-farog Urdu Zaban, New Delhi (2005)
- संस्करण : 2005
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