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मैं घर से दूर उताक़-ए-बदन में रहता हूँ

मसऊद मुनव्वर

मैं घर से दूर उताक़-ए-बदन में रहता हूँ

मसऊद मुनव्वर

MORE BYमसऊद मुनव्वर

    रोचक तथ्य

    त्रैमासिक : अंक 5 : इन्तिसाब, सिरोंज मध्यप्रदेश

    मैं घर से दूर उताक़-ए-बदन में रहता हूँ

    सवाद-ए-हिज्र के बाब-ए-कुहन में रहता हूँ

    कहीं तो रहना है जब तक मिला है इज़्न-ए-क़याम

    सो हर्फ़-ओ-सौत के शहर-ए-सुख़न में रहता हूँ

    मैं अक्स हूँ तिरे पैराहन-ए-गुल-ओ-मुल का

    मैं एक रंग हूँ बर्ग-ए-समन में रहता हूँ

    कभी हूँ ज़ुल्फ़ की ज़ोलीदगी में वारफ़्ता

    कभी मैं तेरी जबीं की शिकन में रहता हूँ

    मिसाल-ए-बोसा-ए-दोशीज़गान-ए-शहर-ए-जमाल

    तिरे लबों के गुलाबी चमन में रहता हूँ

    मियान-ए-चश्म-ज़दन ढूँढ मुझ को पलकों में

    कहीं नहीं हूँ तिलिस्म-ज़दन में रहता हूँ

    जहाँ से तू ने निकाला मिरे अब-ओ-जद को

    मैं आज भी उसी बाग़-ए-अदन में रहता हूँ

    वही हुआ हूँ ग़ज़ाल-ए-सफ़ा के नाफ़े में

    मैं मुश्क-ए-ला हूँ हवा-ए-ख़ुतन में रहता हूँ

    है पनजनद की गुज़रगाह मेरा निस्फ़ ख़याल

    मैं निस्फ़ वादी-ए-गंग-ओ-जमन में रहता हूँ

    ज़मीन मेरे लिए सैर-गाह है 'मसऊद'

    मैं शम्स-ज़ाद हूँ नीले गगन में रहता हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : Alami Urdu Adab, Jild 27 (पृष्ठ 163 (e) 164)
    • रचनाकार : Nand Kishor Vikram
    • प्रकाशन : Publishers and Advertisers, Krishn Nagar, Delhi, (October 2008)
    • संस्करण : October 2008

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