मैं जिधर जाऊँ मिरा ख़्वाब नज़र आता है
मैं जिधर जाऊँ मिरा ख़्वाब नज़र आता है
अब तआक़ुब में वो महताब नज़र आता है
गूँजती रहती हैं साहिल की सदाएँ मुझ में
और समुंदर मुझे बेताब नज़र आता है
इतना मुश्किल भी नहीं यार ये मौजों का सफ़र
हर तरफ़ क्यूँ तुझे गिर्दाब नज़र आता है
क्यूँ हिरासाँ है ज़रा देख तो गहराई में
कुछ चमकता सा तह-ए-आब नज़र आता है
मैं तो तपता हुआ सहरा हूँ मुझे ख़्वाबों में
बे-सबब ख़ित्ता-ए-शादाब नज़र आता है
राह चलते हुए बेचारी तही-दस्ती को
संग भी गौहर-ए-नायाब नज़र आता है
ये नए दौर का बाज़ार है 'आलम'-साहिब
इस जगह टाट भी कम-ख़्वाब नज़र आता है
- पुस्तक : Istifsaar (पृष्ठ 36)
- रचनाकार : Sheen Kaaf Nizam, Aadil Raza Mansoori
- प्रकाशन : Aadil Raza Mansoori (Issue No. 1, Oct To Dec. 2013Issue No. 1, Oct To Dec. 2013)
- संस्करण : Issue No. 1, Oct To Dec. 2013
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