मैं जो कल पैरहन-ए-ख़ाक बदल कर आया
मैं जो कल पैरहन-ए-ख़ाक बदल कर आया
वो भी मिलने नई पोशाक बदल कर आया
ऐ ज़मीं-ज़ाद तिरी रिफ़अतें छूने के लिए
तुझ तलक मैं कई अफ़्लाक बदल कर आया
हम से कर बे-सर-ओ-सामानी-ए-हिजरत पे सवाल
उस से मत पूछ जो इम्लाक बदल कर आया
'इश्क़ में कोई तकल्लुफ़ की ज़रूरत तो नहीं
फिर वो क्यों दीदा-ए-नमनाक बदल कर आया
उस को रास आई है ये बज़्म-ए-जहाँ जो भी यहाँ
अपना पैमाना-ए-इदराक बदल कर आया
आँसुओं से न बदल पाया रुख़-ए-बाद-ए-जमाल
पर मिज़ाज-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक बदल कर आया
- पुस्तक : अकेलेपन की इन्तिहा (पृष्ठ 89)
- रचनाकार : जमाल एहसानी
- प्रकाशन : रेख़्ता पब्लिकेशंस (2018)
- संस्करण : First
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