मता-ए-शौक़ तो है दर्द-ए-रोज़गार तो है
मता-ए-शौक़ तो है दर्द-ए-रोज़गार तो है
अगर बहार नहीं इशरत-ए-बहार तो है
अदा-ए-चाक-ए-गरेबाँ से बा-ख़बर न सही
जुनून-ए-शौक़ को फ़र्दा का ए'तिबार तो है
तरस रहे हैं दिल-ओ-जाँ जो रंग-ओ-बू के लिए
मिरे नसीब में इक दश्त-ए-इंतिज़ार तो है
कहाँ नसीब हवस को जुनूँ की आराइश
लहू लहू है गरेबान तार तार तो है
इन आबलों को हिक़ारत से देखने वाले
इन आबलों से चमन का तिरे वक़ार तो है
हज़ार तरह से रुस्वा हैं अहल-ए-दर्द तो क्या
तिरा दयार तो है तेरा रहगुज़ार तो है
हयात तल्ख़ सही रोज़-ओ-शब हराम सही
दिल-ओ-नज़र को ये माहौल साज़गार तो है
- पुस्तक : Taqdeer-e-hina (पृष्ठ 43)
- रचनाकार : Arshi Bhopali
- प्रकाशन : Hind Offset Printers, Bhopal
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