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न कर दिल को दाग़ी गुल-ए-आरज़ू का

मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी

न कर दिल को दाग़ी गुल-ए-आरज़ू का

मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी

MORE BYमिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी

    कर दिल को दाग़ी गुल-ए-आरज़ू का

    फिरे है कहाँ मान कहना किसू का

    हमें भी दिखा दे इलाही कोई याँ

    परी-ज़ाद बेदाद शो'ला भबूका

    रहा दामन-ए-गुल पे नित ख़ून-ए-बुलबुल

    सलीक़ा है शबनम को क्या शुस्त-ओ-शू का

    उन्हें ना-कसों से बहुत कम है सोहबत

    जिन्हें जूँ-गुहर पास है आबरू का

    खुली आँख गुल की तो क्या उस ने देखा

    निपट तंग अर्सा है याँ रंग-ओ-बू का

    कभी काम ऐसा हम से हुआ याँ

    जिसे देख बोला हो कोई चूका

    बग़ल में उसे छोड़ फिरता है दर-दर

    दिवाना हूँ 'फ़िद्वी' तिरी जुस्तुजू का

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