न पिन्हाँ राज़-ए-ग़म अब है न था ऐ मेहरबाँ पहले
न पिन्हाँ राज़-ए-ग़म अब है न था ऐ मेहरबाँ पहले
किसी पर अब अयाँ होगा किसी पर था अयाँ पहले
असर होने को तो उन पर भी होगा जोश-ए-वहशत का
उडेंगी मेरे ही दामन की लेकिन धज्जियाँ पहले
कशिश दैर-ओ-हरम की तो असर-अंदाज़ है यकसाँ
मगर ये कह नहीं सकता कि जाऊँगा कहाँ पहले
चला है दौर तो बारी पे साग़र मिल ही जाएगा
बहुत बेजा है ये कहना यहाँ पहले वहाँ पहले
मुझे जब भी कोई ठोकर लगी है राह-ए-उल्फ़त में
हमेशा याद आया है ज़मीं से आसमाँ पहले
मिरी ख़ामोशी-ए-पैहम फ़साना बन गई वर्ना
समझता ही न था कोई मोहब्बत की ज़बाँ पहले
तुम्हारे नाम से तासीर इस में हो गई पैदा
कभी सुनता न था कोई हमारी दास्ताँ पहले
चमन को छोड़ कर जाना ज़रा आसान हो जाता
जला देता अगर सय्याद मेरा आशियाँ पहले
करम इस को समझता हूँ जनाब-ए-जोश का 'साहिर'
ग़ज़ल में वर्ना कब होता था ये हुस्न-ए-बयाँ पहले
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