न रुस्वा इस तरह करते बुला कर मुझ को महफ़िल में
न रुस्वा इस तरह करते बुला कर मुझ को महफ़िल में
पंडित विद्या रतन आसी
MORE BYपंडित विद्या रतन आसी
न रुस्वा इस तरह करते बुला कर मुझ को महफ़िल में
अगर पास-ए-वफ़ा होता ज़रा भी आप के दिल में
न अब वो वलवले बाक़ी न अब वो हौसले दिल में
मिरा होना न होना एक है दुनिया की महफ़िल में
हवादिस से है निस्बत ख़ास ऐसे ज़िंदगानी को
है क़ाएम रब्त-ए-बाहम जिस तरह दरिया-ओ-साहिल में
बड़ी मुद्दत से ये आलम न जीता हूँ न मरता हूँ
बड़ी मुद्दत से मेरी ज़िंदगी है सख़्त मुश्किल में
अभी कोई बला टूटी अभी कोई सितम टूटा
रहा जब तक मैं ज़िंदा इक यही ख़दशा रहा दिल में
मिरी हस्ती की कश्ती का ठिकाना ही नहीं कोई
अभी आग़ोश-ए-तूफ़ाँ में अभी आग़ोश-ए-साहिल में
तुम्हीं सोचो मिरा जीना कोई जीने में जीना है
न कोई आरज़ू दिल में न कोई मुद्दआ' दिल में
सफ़ीना ज़िंदगी का नज़्र-ए-तूफ़ाँ कर दिया 'आसी'
तुझे आख़िर ये क्या सूझी ये क्या आई तिरे दिल में
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