नाला-बर-लब हरम से निकलना पड़ा
नाला-बर-लब हरम से निकलना पड़ा
इक दुआ माँग कर हाथ मलना पड़ा
रहगुज़र में न था आश्ना कोई शख़्स
फिर भी हर शख़्स के साथ चलना पड़ा
कैसी शबनम कहाँ के नसीम-ओ-सहाब
अपने शो'ले में हर गुल को जलना पड़ा
आदतन ख़िज़र के साथ दुनिया चली
फ़ितरतन हम को आगे निकलना पड़ा
चलते चलते जहाँ 'शोर' हम रुक गए
अपना रुख़ हादसों को बदलना पड़ा
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