नफ़्सी-नफ़्सी का है 'आलम सब हुए ना-आश्ना
नफ़्सी-नफ़्सी का है 'आलम सब हुए ना-आश्ना
महशर-ए-ज़ो'म-ए-ख़िरद में कौन किस का आश्ना
मैं ने भी बाद-ए-सबा के हाथ को बोसे दिए
लम्स-ए-गेसू से तिरे दस्त-ए-सबा था आश्ना
आरज़ू-मंदी को ज़र्फ़-ए-आगही दरकार है
पहले होना चाहिए हम को तमन्ना-आश्ना
अजनबी तहज़ीब का मल्बूस है हर जिस्म पर
हर कोई अक़दार से अपनी हुआ ना-आश्ना
बाब-ए-उल्फ़त का मुदर्रिस है वही इस दौर में
जो नहीं हर्फ़-ए-मोहब्बत से ज़रा सा आश्ना
बुल-हवस का ज़िक्र क्या ‘अज़्म-ओ-‘अमल के बहर को
पार करते हैं शनावर और दरिया-आश्ना
‘इश्क़-ए-सादिक़ तो है ‘अन्क़ा और ग़ालिब है हवस
आज के मजनूँ कहाँ 'अबरार' लैला-आश्ना
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