नग़्मा-ए-ज़ंजीर है और शहर-ए-याराँ इन दिनों
नग़्मा-ए-ज़ंजीर है और शहर-ए-याराँ इन दिनों
है बहुत अहल-ए-जुनूँ शोर-ए-बहाराँ इन दिनों
उस वफ़ा-दुश्मन से पैमान-ए-वफ़ा है उस्तुवार
ज़ेर-ए-संग-ए-सख़्त है फिर दस्त-ए-याराँ इन दिनों
मोहतसिब भी हल्क़ा-ए-रिंदाँ का है उम्मीद-वार
कम न हो जाए वक़ार-ए-मय-गुसाराँ इन दिनों
तेज़ी-ए-तेग़-ए-अदा की शोहरतें हैं दूर दूर
है बहुत आबाद कू-ए-दिल-फ़िगाराँ इन दिनों
दोस्तो पैराहन-ए-जाँ ख़ून-ए-दिल से सुर्ख़-तर
बढ़ गया है इल्तिफ़ात-ए-गुल-एज़ाराँ इन दिनों
अहल-ए-दिल पर बारिश-ए-लुत्फ़-ए-निगाह-ए-दिल-नवाज़
मेहरबाँ है इश्क़ पर चश्म-ए-निगाराँ इन दिनों
है गदा-ए-मय-कदा के सर पे ताज-ए-ख़ुसरवी
कूज़ा-गर की गिल है ख़ाक-ए-शहर-ए-याराँ इन दिनों
क्या अजब इशरत-कदों पर बिजलियाँ गिरने लगीं
है बहुत सरकश निगाह-ए-सोगवाराँ इन दिनों
- पुस्तक : Kulliyat-e-Ali Sardar Jafri Vol.II (पृष्ठ 287)
- रचनाकार : Ali Ahmad Fatmi
- प्रकाशन : Qaumi Council Baray-e-farog Urdu Zaban, New Delhi (2005)
- संस्करण : 2005
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