नहीं पीता मैं पर नवाज़िश हुई है
बड़ी मौसमों की सिफ़ारिश हुई है
बहुत दिन से सहरा के जैसा ये दिल है
न बादल घिरे हैं न बारिश हुई है
यहाँ है बुलंदी जो किरदार की तो
वहाँ ख़ाल-ओ-ख़द की नुमाइश हुई है
तिरी झील जैसी जो देखी हैं आँखें
मिरी डूब जाने की ख़्वाहिश हुई है
छलकता नहीं ख़ून ज़ख़्मों से ऐसे
कहीं नाख़ुनों की भी काविश हुई है
हमें 'इश्क़ में मुब्तला कर रहे हैं
नज़र और दिल में ये साज़िश हुई है
वहाँ दुश्मनों की बड़ी याद आई
जहाँ दोस्तों की नवाज़िश हुई है
वफ़ा-दारियों का सिला मिल रहा है
हमारी सदा आज़माइश हुई है
परेशानियों में जो हम मुब्तला हैं
यक़ीनन कोई हम से लग़्ज़िश हुई है
वहीं अपनी आँखों को हम छोड़ आए
जहाँ मंज़रों की नुमाइश हुई है
रक़ीबों को है छूट महफ़िल में उन की
मिरे आने जाने पे बंदिश हुई है
ग़ज़ल कहना 'फ़ारूक़' मैं छोड़ दूँगा
इसी बात पर उन से रंजिश हुई है
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