नज़र के सुर्ख़ डोरे दिल में उतरे
मुसाफ़िर दामन-ए-साहिल में उतरे
फ़ज़ाओं में उड़ानें भरने वाले
पतंगे गोशा-ए-महफ़िल में उतरे
खनकते नुक़रई सिक्कों के ताइर
तिलाई कासा-ए-साइल में उतरे
कई ख़ंजर निगाह-ए-ख़िशमगीं के
ब-यक लम्हा दिल-ए-बिस्मिल में उतरे
कफ़न-बर-दोश थे अहल-ए-मोहब्बत
बक़ा की जावेदाँ मंज़िल में उतरे
न भूले अहद-ए-हाज़िर के तक़ाज़े
ग़ज़ल जब फ़िक्र की महमिल में उतरे
'सबा' के साथ रहमत के फ़रिश्ते
अचानक कूचा-ए-क़ातिल में उतरे
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