नींद उन की उचाट हो गई है
नींद उन की उचाट हो गई है
आँखों में शराब उबल पड़ी है
बेचैन है दिल उचाट है दिल
बस्ती बस कर उजड़ गई है
कलियों की सदा भी सुनते जाओ
अफ़्साना क़रीब ख़त्म ही है
इक घुन सा लगा हुआ है जी को
जैसे कोई चीज़ खो गई है
ग़म इतने उठाऊँगा कि दुनिया
ख़ुद को कहने लगे ये आदमी है
गुम होश नज़र उदास दिल सर्द
'महशर' की अजीब ज़िंदगी है
- पुस्तक : Sahbaa-o-Saman (पृष्ठ 51)
- रचनाकार : ahshar Inayati
- प्रकाशन : Ismail Graphic, Chaman Ganj, Kanpur (1st 1979 IInd 2008)
- संस्करण : 1st 1979 IInd 2008
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